Skip to main content

रस उनके अंग भेद और उनके उदहारण हिंदी वयाकरण by knowledge keyword

      रस और उसके भेद और उनके  उदाहरण

            

        रस क्या होता है?

रस का शाब्दिक अर्थ होता है आनंद।
काव्य को पढ़ते या सुनते समय जो आनंद मिलता है उसे रस कहते हैं।


              रस के अंग

1विभाव
2अनुभाव
3संचारी भाव
4स्थायी भाव


1.विभाव- विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वालों को विभाव रस कहते हैं। इन्हें कारण रूप भी कहते हैं।

स्थायी भाव के प्रकट होने का मुख्य कारण आलम्बन विभाव होता है। इसी की वजह से रस की स्थिति होती है। जब प्रकट हुए स्थायी भावों को और ज्यादा प्रबुद्ध , उदीप्त और उत्तेजित करने वाले कारणों को उद्दीपन विभाव कहते हैं।

आलंबन विभाव के पक्ष :-

1. आश्रयालंबन
2. विषयालंबन
1. आश्रयालंबन :- जिसके मन में भाव जगते हैं उसे आश्रयालंबन कहते हैं।
2. विषयालंबन :- जिसके लिए या जिस की वजह से मन में भाव जगें उसे विषयालंबन कहते हैं।
2.अनुभाव-वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जिनसे अर्थ प्रकट होता है उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभवों की कोई संख्या निश्चित नहीं हुई है।


जो आठ अनुभाव सहज और सात्विक विकारों के रूप में आते हैं उन्हें सात्विकभाव कहते हैं। ये अनायास सहजरूप से प्रकट होते हैं | इनकी संख्या आठ होती है।
1. स्तंभ
2. स्वेद
3. रोमांच
4. स्वर – भंग
5. कम्प
6. विवर्णता
7. अश्रु
8. प्रलय
संचारीभाव-जो स्थानीय भावों के साथ संचरण करते हैं वे संचारी भाव कहते हैं।
इनकी संख्या33 हैं।
1. हर्ष
2. चिंता
3. गर्व
4. जड़ता
5. बिबोध
6. स्मृति
7. व्याधि
8. विशाद
9. शंका
10. उत्सुकता
11. आवेग
12. श्रम
13. मद
14. मरण
15. त्रास
16. असूया
17. उग्रता
18. निर्वेद
19. आलस्य
20. उन्माद
21. लज्जा
22. अमर्श
23. चपलता
24. धृति
25. निंद्रा
26. अवहित्था
27. ग्लानि
28. मोह
29. दीनता
30. मति
31. स्वप्न
32. अपस्मार
33. दैन्य
34. सन्त्रास
35. औत्सुक्य
36. चित्रा
37. वितर्क

स्थाईभाव-रसरूप में जिसकी परिणति हो सकती है वे स्थायी होते हैं।


                    रस के भेद

1.श्रृंगार रस
2.हास्य रस
3.रौद्र रस
4.करुण रस
5.वीर रस
6.अदभुत रस
7.वीभत्स रस
8.भयानक रस
9.शांत रस
10.वात्सल्य रस
11.भक्ति रस





श्रृंगार रस- रति नामक स्थाई भाव ,विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से श्रृंगार रस बनता है।

जैसे- निसिदिन बरसात नैन हमारे।
        सदा रहित पावस ऋतु हुम् पे जब ते स्याम           सिधारे।।

शृंगार रस के दो भेद होते हैं
1.संयोग श्रृंगार रस 
2.वियोग श्रृंगार रस

1.संयोग श्रृंगार रस:- नायक नायिका  के परस्पर प्रेम पूर्ण दर्शन संपर्क वार्तालाप प्रेम क्रीड़ा आदि के द्वारा जिन प्रेमानंद किस दृष्टि होती है उसका चित्रण संयोग श्रृंगार है।

उदाहरण:-बतरस लालच लाल ,मुरली धुरी लुकाय।
               सौंह करै,भौहनि हँसें, दैन कहै, नटी जाय।।


2.वियोग श्रृंगार रस:-अनन्य प्रेमी नायक नायिका समागम ना हो पाने या एक दूसरे से विछोह हो जााने पर उनकी                           वियोगवस्थथा का चित्रण वियोग श्रृंगार है।

उदाहरण:-मधुवन तुम कत रहत हरे।
              विरह वियोग स्यामसुंदर के ठाणे क्यों न जरे।
हास्य रस- हास नामक  स्थाई भाव ,विभाव ,अनुभाव तथा संचारी भाव से हास्य रस बनता है।

उदाहरण:-विन्ध्य के बासी उदासी तपी ब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीये तरी तुलसी सो कथा सुनी भे मुनिवृन्द सुखारे।
होइहैं सिला सब चंद्रमुखी परम् पद मंजुल कंज तिहारे।
किन्ही भली रघुनायक जू करून करि कानन को पगु धारे।





करूण रस:-किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से शोक का चित्रण करुण रस है।
  

                        या

शोक नामक स्थाई भाव,विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से करुण रस बनता है।

उदाहरण:- सोक बिकल सब रोवहिं रानी।रूप सील बल तेज बखानी।
करहि बिलाप अनेक प्रकारा। परहिं भूमितल बारहिं बारा।




रौद्र रस:- अनुचित तथा अवांछित स्थिति तथा उसके कारणभूत व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर उत्पन्न क्रोध का चित्रण रौद्र रस कहलाता है

                             या

क्रोध नामक स्थाई भाव विभाव अनुभाव तथा संचारी भाव से रौद्र रस बनता है।

उदाहरण:-अति रिस बोले वचन कठोरा कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।
बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू उल्टाहुँ महि जहँ लगि तव राजू।


वीर रस:- युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिये ह्रदय में जो उत्साह जागृत होता है, उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।

                             या

उत्साह नामक स्थायी भाव,विभाव ,अनुभाव तथा संचारी भाव से वीर रस बनता है।

कुध्द दशननी बीस भुजानि सोलै कपि रीछ अनि सर बट्टत।
लच्छन तच्छन रक्त किये द्रगलच्छ विपच्छन के सिर कट्टत।।




भयानक रस:-डरावने दृश्यों या भयानक प्रसंगों के चित्रण से भयानक रस की उत्पत्ति होती है।

                          या

भय नामक स्थाई भाव, विभाव,अनुभाव तथा संचारी भाव से भयानक रस बनता है।

उदाहरण:-एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृगराय।
             विकल बटोही बीच ही परयो मुरछा खाय।।



वीभत्स रस:-घृणा उत्पन्न करने वाले ,अमांगलिक, अश्लील या गंदे दृश्यों अथवा वस्तुओं के चित्रण से वीभत्स रस बनता है।

                          या
जुगुप्सा या घृणा नामक स्थायी भाव,विभाव,अनुभाव तथा संचारी भाव से वीभत्स रस बनता है।

उदाहरण:- सिर पै बैठयो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहि स्यार आँतिहिं आनंद उर धारत।।
गिद्ध जाँघ कहँ खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि काटि कै खात विदारत।।



अदभुत रस :-विस्मय स्थायी भाव से परस्पर रस अदभुत रस कहलाता है।

                                          या

विस्मय/आशचर्य नामक स्थायी भाव,विभाव,अनुभाव तथा संचारी भाव से अदभुत रस बनता है।


उदाहरण:-ईहा उहा दुई बालक देखा,मति भ्रम मोरि कि आन विसेखा।
देखी राम जननी अकुलानि प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।।




शांत रस:- संसार की नाश मानता दुखमयता तथा   असत्यता के यथार्थ बोध से मन जब अलौकिक जगत से थोड़ा ऊपर उठकर निरक्त, निस्पृह और शांत हो जाता है तो उक्त स्थिति को शांत रस कहते हैं।उक्त स्थिति के अनुकूल चित्रण शांत रस कहलाता है।
  

                         या

निर्वेद/वैराग्य/वीतराग नामक स्थायी भाव,विभाव,अनुभाव तथा संचारिभाव से शांत रस बनता है।

उदाहरण:-दीन मलीन हीन मति जाती मो पर कृपा कीन्हि बहुभाँति।
अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे मज्जनु करिय समर श्रम छीजे।।
देखि कोस मंदिर सम्पदा देहू कृपाल कपिन्ह कहुँ मुदा।
सब बिधि नाथ मोहि अपनाइय।पुनि मोहिं सहित अवधपुर जाइय।।


वात्सल्य रस:- पुत्र या अपने से छोटे लोगों के बाल सुलभ निर्दोष निश्चल तथा निर्मल आचरण व्यवहार एवं हाव-भाव देख कर उनके प्रति प्रेम का उदय वात्सल्य भाव है इस भाव के जागरण के अनुरूप बाल लीला आदि का चित्रण वात्सल्य है।


                                या

वात्सल्य रति नामक स्थाई भाव,विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से वात्सल्य रस बनता है।

उदाहरण :-जसोदा हरि पालने झुलावै।
               हलरावै दुलराई मल्हावै जोई सोइ कुछ गावै।
              मेरे लाल को आउ निदरिया काहे न आनि सुवावै।




भक्ति रस :- ईश्वर के अनन्य प्रेम का भाव भक्ति है इन सब की पुष्टि के अनुरूप ईश्वर लीला विनय आदि का वर्णन भक्ति रस की संज्ञा प्राप्त करता है।

                           या

भगवद विषयक रति/अनुराग नामक स्थायी भाव,विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से भक्ति रस बनता है।

उदाहरण :-हे दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी।
               हे प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंज हारी।
               रथ तू अनाथ को अनाथ कौन मोसों।
               हे समान आरत नहिं, आर तिहार तोसों।









Comments

Popular posts from this blog

वाक्यांश के लिए एक शब्द ( हिंदी व्याकरण )

.             वाक्यांश के लिए एक शब्द  कम से कम शब्द में आधिकारिक भाव और विचारों की अभिव्यक्ति का प्रयास प्रत्येक लेखक या वक्ता करता है  किन्तु ऐसा तभी सम्भव हो पाता है, जब वक्ता द्वारा व्यवहाहित भाषा में ऐसे शब्द की बहुलता हो जो अर्थ के दवाब को अध्याधिकारन करन हो सकता है किसी भाषा में ऐसे शब्द की बहुलता की समृद्धि का द्योतक है  इस मायने में हिंदी भी एक समृद्ध भाषा है हिंदी में ऐसे शब्द शब्द संस्कृत से कुछ हैं हिंदी को स्वयं विकसित किया है |                            (अ ) • समान समान दूसरा कोई नहीं हो ----- अनुपम • जिस पर अनुग्रह किया गया हो ----- अनुगमन • जिसका शत्रु न जन्ममा हो -------- अजातशत्रु • अंत जीता न जावर ------ अजेय • जो कुछ नहीं जनता ------ अज्ञात • गुरु के समिप रहने वाले छात्र ------ इंटेवासी • दोपहर के बाद का समय ------ अपराह्न • पर पर अभियोग चलाया गया ------ अभियुक्त • जोकी कोई सीमा नहीं हो ----- असीम • जोको जाना न जावर ---...

Alankar अलंकार हिंदी व्याकरण hindi grammar

                     अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाने वाले उपकरण अलंकार कहलाते हैं|                 अलंकार के भेद 1. शब्दा अलंकार 2. अर्थालंकार 3. उभया अलंकार                      शब्दालंकार क्या होता है जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।                   शब्दालंकार के भेद 1. अनुप्रास अलंकार 2. यमक अलंकार 3. पुनरुक्ति अलंकार 4. विप्सा अलंकार 5. वक्रोक्ति अलंकार 6. श्लेष अलंकार                      अनुप्रास अलंकार जब किसी वर्ण की आवृत्ति बार बार हो तब जो चमत्कार होता है अनुप्रास अलंकार कहलाता है| जैसे  :- जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप। विश्व बदर इव धृत उदर जोवत...

Verb में ing जोड़ने का नियम (Rule of verb +ing)English grammar

     Verb में ing जोड़ने   के   नियम  Rule no:-(1)यदि verb के अंत में e हो तो ing जोड़ते समय e हट जाती है  Ex:-Come+ing=Coming         Give+ing=Giving  Rule no:-(2)यदि verb के अंत में Consonat हो तथा उसके पहले single vowel हो तो ing जोड़ते समय consonant double हो जाता है  Ex:-Swim+ing=Swimming         Run+ing=Running Rule no:-(3)यदि verb के अंत में ie हो तो ing जोड़ते समय ie के स्थान पर y हो जाता है  Ex:-Lie+ing=Lying        Die+ing=Dying Rule no:-(4)शेष सभी क्रियाओं में ing जोड़ते समय कोई परिवर्तन नहीं होगा